Linseed Cultivation : तिलहनी फसलों के उत्पादन में भारत अहम भूमिका निभाता है। भारत में तिलहनी फसलों के उत्पादन में बढ़िया पैदावार देखने को मिल रही है। सरकार भी किसानों की मदद करने के लिए कई तरह की योजनाएं चला रही है।
देश में तिलहनी फसलों की खेती रबी सीजन में की जाती है। देश में तिलहनी फसलों में मुख्यतः सूरजमुखी, सरसों, राई, तारमीरा आदि की खेती बड़े पैमाने पर की जाती है। आज हम आपको ऐसी फसलों की जानकारी देने वाले हैं, जिनकी खेती तिलहन के साथ-साथ दवाइयों के रूप में भी की जाती है।
आज हम आपको अलसी ( lineseed) की खेती के बारे में बताने जा रहे हैं। अलसी की खेती करने के लिए कम पानी की जरूरत पड़ती है और आपके प्रति हेक्टर 10 से 15 क्विंटल का उत्पादन मिल जाता है। अगर देश में अलसी की खेती की बात की जाए तो मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, उड़ीसा और बिहार में मुख्य रूप से उत्पादन लिया जाता है। यहां के किसान कम लागत में तगड़ा मुनाफा कमा रहे हैं।
अलसी की खेती के लिए मौसम
अलसी की खेती रबी के सीजन में की जाती है। इस फसल की बुवाई अकतूबर से लेकर नवंबर के अंत तक की जाती है। कृषि वैज्ञानिकों का मानना है कि अलसी के बीजों को लगाने के लिए 25 से 30 डिग्री सेल्सियस तापमान की जरूरत पड़ती है। वही बीजों का जमाव 15 से 20 डिग्री सेल्सियस में हो जाता है। अलसी की खेती के लिए सर्दी के महीने सबसे उपयुक्त माने जाते हैं।
कौन सी मिट्टी रहेगी उपयुक्त
अगर आप भी अलसी की खेती का प्लान कर रहे हैं, तो सबसे पहले मिट्टी की जांच करवाने की सलाह दी जाती है। अलसी की खेती में काली दोमट मिट्टी सबसे अच्छी मानी जाती है। इस फसल की बढ़िया पैदावार लेने के लिए खेत को जैविक विधि से अच्छी तरह तैयार कर ले। इसके साथ-साथ खेत में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
उन्नत किस्में
अलसी की खेती में शानदार उत्पादन लेने के लिए हम आपको कुछ उन्नत किस्म के बारे में बताने वाले हैं। कम पानी और अधिक पानी वाले इलाकों के लिए ये किसमें निर्धारित की गई है।
अगर आपके खेत में पानी की व्यवस्था उचित है तो सुयोग, जेएलएस 23, ( lineseed) पूसा 2, पीकेडीएल 41, टी 397 किस्मों की बुवाई की जा सकती है। इन किस्म का उत्पादन 10 से 15 क्विंटल तक हो सकता है।
वहीं अगर आपके इलाके में पानी की कमी है तो शीतल, रश्मि, इंदिरा अलसी 32, जेएलएस 62, जेएलएस 66, जेएलएस 73 आदि किस्मों की बुवाई की जा सकती है। इन किस्मों से आपको 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर का उत्पादन मिल जाएगा।
बुवाई का सही तरीका
अलसी की बुवाई दो तरीकों से की जाती है। अलसी की बुवाई करते समय छिड़काव विधि और कतार विधि का उपयोग किया जाता है। इसके साथ-साथ कतार विधि में किसान ड्रिल मशीन की मदद से बिजाई कर सकते हैं।
कतार विधि से बिजाइ करते समय लाइनों के बीच की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधों के बीच की दूरी 5 से 7 सेंटीमीटर तक रखी जाती है। वही बीच की गहराई 2 से 3 सेमी तक होती है। फसल को खरपतवार और अन्य कीटों से बचाने के लिए 2.5 से 3 ग्राम कार्बरिज्म से प्रति किलोग्राम बीज को उपचारित करना चाहिए।
कितने दिन में मिलेगा उत्पादन
अलसी एक तिलहनी फसल होती है जिसमें कम समय लगता है। अलसी की फसल को तैयार होने में बिजाई के बाद करीबन 100 से 110 दिन का समय लग जाता है। पकने के बाद जैसे ही फसल सूख जाती है तो इसकी कटाई करके छोड़ देना चाहिए। अलसी का उत्पादन खेती करने के तरीके और इलाकों पर निर्भर करता है। अगर जैविक तरीके से इसकी खेती की जाए तो 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन लिया जा सकता है।
फसल की देखभाल का तरीका
अलसी की फसल में अक्सर कई बीमारियों का प्रकोप देखने को मिलता है। वैज्ञानिक के अनुसार इन बीमारियों की समय-समय पर देखरेख की जानी चाहिए और कीटनाशकों का छिड़काव करने की सलाह मिलती है। ( lineseed)
फसल बुवाई के 45 दिन बाद 2.5 किलोग्राम में मैकोजेब को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 15 दिन के अंतराल में छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ-साथ रतवा या बुकनी रोग दिखाई देने पर 3 किलोग्राम घुलनशील गंधक को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिड़कना चाहिए।